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गुरुवार, 8 जुलाई 2010

मोहब्बत - अपनों की

क्या हो गर छोड़ के दुनिया भी कुछ हासिल न हो,
बाद मुद्दत के भी अपनों की चाहतें नासिर न हो,


मोहब्बत बड़ी चीज़ है, जानते है सब ही,
फर्क इतना है हम-आप जताते है कोई और जताता नहीं!!

डरते है ज़माने की तनहाइयों से मगर खुद,
वो जो अपने हैं छोड़ जाते हैं तनहाइयों मे उन्हें,
नहीं महसूस कर पाते है उनके जज़्बात जो सच्चे है,
भागते है पीछे उन तितलियों के जो हैं ही नहीं!!

वक़्त गुजरते क्या लम्हे भी महसूस नहीं होते,
जब होते हैं सारे अपने साथ, महसूस कर पाते है हम उनके जज़्बात,
पर क्यों नहीं रह सकते साथ उनके, क्यों गुज़ार नहीं पाते ताउम्र साथ,
पूछते है जवाब खुद-ब-खुद, क्या वो हमारे अपने, अपने नहीं!!!
--

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मन की इस उहापोह को बखूबी बयां किया है...


कमेंट्स की सेटिंग से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने वालो को आसानी होगी .

Unknown ने कहा…

aap sabke sneh ki aakanshi, Ashirwad banaye rakhiye!

mai... ratnakar ने कहा…

नहीं महसूस कर पाते है उनके जज़्बात जो सच्चे है,
भागते है पीछे उन तितलियों के जो हैं ही नहीं!!


zindgaee kee ek bahut badee haqeeqat ko aapne kisee kushal shilpee kee tarah uker diya hai shilpee jee, badhai, itana achchha likhane ke lie, aur likhie aur khoob likhie

Saurabh Pandey ने कहा…

wah...kya bat kahi hai aapne....