आँखे!!!
वो पनीली सी,
डबडबाई हुई...
बिना कुछ कहे
सब बयां कर देती हैं...
होठ सिले हो
फिर भी...
जाने क्यों
चीखती हैं आँखे....
तुम कहते हो
मैं बोलूं...
होंठो को खोलूं....
पर मै
सोचती हूँ,
क्या बोलूं ?
सिले लब
कैसे खोलूं?
तुम तो
मगन हो
अपनी दुनिया में...
कभी फुर्सत मिले...
तो पढ़ लेना...
क्या कहती हैं...
मेरी आँखे!!!!!!!!