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गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

आँखे

आँखे!!!
वो पनीली सी,
डबडबाई हुई...

बिना कुछ कहे
सब बयां कर देती हैं...
होठ सिले हो
फिर भी...
जाने क्यों
चीखती हैं आँखे....


तुम कहते हो
मैं बोलूं...
होंठो को खोलूं....
पर मै
सोचती हूँ,
क्या बोलूं ?
सिले लब
कैसे खोलूं?


तुम तो
मगन हो
अपनी दुनिया में...
कभी फुर्सत मिले...
तो पढ़ लेना...
क्या कहती हैं...
मेरी आँखे!!!!!!!!

जिंदगी

बड़ी गैर है
जिंदगी
तेरी मंजरी,

बड़ी भोली है
जो तूने इस पर
कर लिया
यकीन

हुई है ये कभी
किसी की
जो तेरी होगी,

खुशियाँ भी
कभी गम के
साकी हुई,

माफ़ कर
ऐ गुनहगार
दिल मेरे

मुझको बता,
क्यों?
तुझपे ऐतबार
इतना ख़ास सा था,

इकरार किया
झूठा वफ़ा था,
या कि वो
प्यार ही न था ?