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बुधवार, 28 जुलाई 2010

पापा का ब्लॉग

पापा का ब्लॉग एक बार अवश्य आइये!
मेरे गुरु, मेरे सृजक, मेरी हर धारणा का आधार

http://pragyan-vigyan.blogspot.com/


सोमवार, 26 जुलाई 2010

गांधारी

चलो चलें
एक ऐसे युग में,
करें पुरानी बात,
याद दिलाएं
कुछ सुलझाएं,
सुनी अनसुनी राग!

युग है द्वापर,
नाम गांधारी,
सती उसे सब मानें,
पति-धर्म की
पावन धरा की
पतिव्रता पहचानें,
पति-धर्म निभाने,
उसने बांध नयन पर पट्टी,
चली उसी डगर संग
चले जिधर "कुंवर जी!"

साथ निभाया
कुंती का भी,
भगिनी धर्म निभाया,
पर क्या
माँ के पावन रूपों का
भी उसने फ़र्ज़ निभाया?
बात करें जब बीच सभा
में सबने चुप्पी थी ठानी
माँ का धर्म निभाती;
क्या करती रही गांधारी?

वक़्त था पति को
राष्ट्र-धर्म के मर्मों
को समझाती,
नहीं समझ थी
धृतराष्ट्र की आँखें
वो बन जातीं
माँ थी सबकी,
बड़ी थी सबसे,
प्रिय चहेती सबकी
अर्जुन-भीम-युधिष्टिर
संग दुर्योधन की
भी प्रिय थी

दिया कृष्ण को
श्राप मोहवश,
किया उन्होंने पक्षाघात,
क्यों नहीं दी
'दिव्यता' सबको
किया छल औ आघात
यदि चाहती
सबको साथ माला
में एक संजोकर,
नहीं होने देतीं
वो युद्ध "महाभारत"
महा-विध्वंसक!!

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

खुशियाँ समेट

अक्स किसका संजोया है
इन आँखों मे हमने,
बीत गए
दिन, महीने औ साल
न जान पाए
उस अक्स मे
है कौन शख्स?

किसका अरमान है
दिल मे है कौन?
कौन है
इन धडकनों मे आज?

सिर्फ महसूस होती है
एक आवाज
अपने आस पास
एक ख़ास
जो कहती है

अपने होने का एहसास मत खो
मत जाने दे आज
जो तुझमे है
जो तू है,
क्यों खोती जा रही है
तू खुद को
आजा अपने करीब आ
पहचान ले खुद को
खुद के नसीब को
छोड़ दे उसे
जो तेरा नहीं है
अपने दामन मे
अब बस खुशियाँ समेट!

तेरा साथ

रहा कुछ अपने मन का, कुछ औरो से सुना हमने
तेरी की जुस्तजू खुद को किया तन्हा हमने!

हर रात सुना है तन्हा हो जाते है लोग
यहाँ तो पल पल अपने तन्हा किए हमने!!

हर सिम्त सिमटती है मेरे अपने होने की आस,
लम्स है कि जज्बात पिरोये है हमने!

दूर होती जाती है यूं मेरे बदन की खुशबू,
रख छोड़ा हो गुलाब सदियों से किताब मे हमने!!

सांस लेना सिर्फ नाकाफी है जीने के लिए,
मेरे माही, या इलाही तेरा साथ माँगा हमने!

मौत आनी है तो आये वो बेशक आये,
बस एक बार तेरा साथ माँगा है हमने!!

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

प्यार की माटी

हमने सबको प्यार दिया, पर सबने की मनमानी,
दिल मे मेरे कब क्या था, ये किसी ने न पहचानी

प्यारा दिल था, सच्चे थे प्यारे इसके एहसास,
क्यों नहीं हुई पूरी फिर इस सच्चे से नन्हे दिल की आस,

आस लगायी नहीं थी क्यूंकि मैंने था जाना,
आशाएं ही दे जाती हैं; इक दिन घोर निराशा,
पर दिल का क्या वो तो निश्छल सा था प्यारा,
ज्यो हो किसी माँ की गोदी मे नन्हा कोई दुलारा!

दिल था वह तो मांग किसी से कुछ भी कभी न पाता,
पर बस बदले प्यार के थोडा प्यार उसे ललचाता,
रहता वह बस इंतज़ार मे, कौन है कितना प्यारा,
कौन दिलाये उसे भी उसका प्रतिबिम्ब वो प्यारा,

क्या गलती की, उसने तो सबको ही अपनाया,
कौन था अपना कौन पराया, कभी नहीं जतलाया,
स्वम उसी के दिल ने उसको कितना भरमाया,
पर आगे दिल के उसकी एक नहीं चल पाया,

नहीं नापा कभी किसी को किसी कसौटी रखकर,
नहीं तोलना चाहा कभी कि किसकी कितनी माटी,
किस माटी से कौन बना, है किसमें कितना प्यार,
दिया सभी को एक बराबर उसने प्यार का वो एहसास,
नहीं मिला फिर क्यों उसको उसकी माटी का प्यार,
माटी था वो माटी मे मिलना किया न क्यों स्वीकार!!!

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

मोहब्बत - अपनों की

क्या हो गर छोड़ के दुनिया भी कुछ हासिल न हो,
बाद मुद्दत के भी अपनों की चाहतें नासिर न हो,


मोहब्बत बड़ी चीज़ है, जानते है सब ही,
फर्क इतना है हम-आप जताते है कोई और जताता नहीं!!

डरते है ज़माने की तनहाइयों से मगर खुद,
वो जो अपने हैं छोड़ जाते हैं तनहाइयों मे उन्हें,
नहीं महसूस कर पाते है उनके जज़्बात जो सच्चे है,
भागते है पीछे उन तितलियों के जो हैं ही नहीं!!

वक़्त गुजरते क्या लम्हे भी महसूस नहीं होते,
जब होते हैं सारे अपने साथ, महसूस कर पाते है हम उनके जज़्बात,
पर क्यों नहीं रह सकते साथ उनके, क्यों गुज़ार नहीं पाते ताउम्र साथ,
पूछते है जवाब खुद-ब-खुद, क्या वो हमारे अपने, अपने नहीं!!!
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