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मंगलवार, 3 जुलाई 2012

नया जहान ढूंढ ही लूंगी


चलना चाहते हो 
मेरे संग तो 
बन आकाश चलो 
मैं धरती बन कर 
कहीं तो तुम्हे छू ही लूंगी 


दूर रह कर भी दिलो में हो
प्यार सा सहारा 
लौटना चाहूँ भी 
तो भी लौट न सकूंगी 


थाम कर हाथ 
चलो संग मेरे वहां जहाँ 
कहीं दूर मिला करते हैं 
धरती गगन विश्वास के साए में 
नया जहान ढूंढ ही लूंगी !!

मुस्कराहट को जगा दे!!




अंत हो जाना
मन के सारे रुदन का,
पिछले पहर
ज्यू छिपा हो 
सूरज 
और बाकी हो 
उसकी लालिमा,

याद दिलाती हो
समझने को
जो तुममे है उर्जा,
अपने भीतर की
छिपी शक्ति को
समेट मत,


उसे जान,
आत्मा की आवाज़
बुलंद कर,
उसे पहचान,
आत्म मंथन से
मन का 
क्रंदन कर बंद,
हंसा दे उसे,
उसकी मुस्कराहट को जगा दे!!