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गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

रिश्तो की सुनामी

पलकों की
चिलमन से
झांकता एक सपना,
नित नए
राज़ों को
खोलता है,

आहिस्ता-आहिस्ता
दबे पावँ
चला आता है,.
चुपके से
मेरे आँचल मे
सो जाता है!!

हर नया दिन
एक नयी आस
जगाता है,

आकाश को
देखकर मेरा मन
उसे छूने को
मचल जाता है,

चाहती हूँ,
नापना
सागर की गहरायी,
तोतली एक बोली
जो राज को
हो खोलती,

चाह है खेलूं
सागर की सिलवटों से
लिपटकर,
झूम जाऊ
लहर्रों मे
सिमटकर,
भर लू गोद मे
सारे तूफ़ान,
कि फिर कभी
न आये सुनामी

मौसम के
नए नज़ारे
जो हर पल
दिल संवारे,
बिखरा दे नया संगीत,
होंठों पर दे
फिर नया गीत,

महक जायें
खुले गेसुओं से
हर पल नए फ़साने,
बादलों की छिट-पुट,
बारिशों की टिप-टिप,
मौजो का मचलना,
दिल का बहकना,
क्यों हो रहा है ये आज,
सब कुछ एक साथ,

महताब मेरे!
राज़ो के रियासतदार,
कहती है ये मंजरी
मेहराबों को देखते जाना,
ऊँचाइयों को छुना,
रिश्तो के बिखराव को
दिल मे समेट लेना!