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सोमवार, 28 जून 2010

अभीप्सा

"बड़े गौर से चाहती हूँ सोचना तुझे,
मगर तू है, कि दूर मेरी चाहतो मे शामिल है!!"

अभीप्सा है कुछ कर पाने की
कुछ कह जाने की
अपनाने की,
उनकी बन जाने की!

दिन-रात बीत जाते हैं, यूँ ही पल-प्रतिपल,
इच्छा है, उन्हें रोक पाने की,
कुछ गुनगुनाने की,
मन की गुत्थी सुलझाने की,
गुम्फित सा क्या है, मन में,
समझ जाने की,
बता पाने की,

रात-औ-दिन का बीतना; समय का अकेलापन सा लगता है,
इच्छा है, उनके लम्हों मे खो जाने की,
उन्हें अपनाने की, अपना बताने की,
कुछ कही - कुछ अनकही; सुनाने की,

मन मे रखा हो ज्यो, कुछ नहीं; बहुत सा,
वह क्या है? जान पाने की,
आपको बताने की,
आपको समझाने की,
खुद समझ पाने की,
अभीप्सा है, हाँ यही इच्छा है, यही जिजीविषा है!!
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