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बुधवार, 10 मार्च 2010

मैंने देखी हैं कुछ सच्चाई है तेरी आँखों में,
मैंने देखी है कुछ नाराजगी सी तेरी आँखों में,
मैंने देखें हैं कुछ टूटे किरचे बिखरे काँच के,
मैंने देखें हैं रात भर जागती आँखों में फिर भी सपने हैं,
मैंने चाहा है हर पल उन सपनो को अपनो की तरह,
सजा के रखना अपने माथे पे, छुपा के रखना अपने आँचल में,
हर लफ्ज जो तुम कह भी न पाओ उन्हें महसूस करने की ख्वाहिश लिए बैठे हैं,
आपकी आँखों के उठती चिल्मन का दीदार लिए बैठें हैं
हर आह जो एक ख़ास पल की है, एक नयी आस की है,
मीर मेरे, मेरे माही, मेरे हमराज़ बन,
तुझमें ख़ाक हो जाने की तमन्ना ख़ास लिए बैठें हैं!!

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