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गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

आँखे

आँखे!!!
वो पनीली सी,
डबडबाई हुई...

बिना कुछ कहे
सब बयां कर देती हैं...
होठ सिले हो
फिर भी...
जाने क्यों
चीखती हैं आँखे....


तुम कहते हो
मैं बोलूं...
होंठो को खोलूं....
पर मै
सोचती हूँ,
क्या बोलूं ?
सिले लब
कैसे खोलूं?


तुम तो
मगन हो
अपनी दुनिया में...
कभी फुर्सत मिले...
तो पढ़ लेना...
क्या कहती हैं...
मेरी आँखे!!!!!!!!

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत प्यारी नज़्म ...सच है की आँखें सब कुछ कह देती हैं ....बहुत अच्छी लगी नज़्म

M VERMA ने कहा…

वाकई आँखे बहुत कुछ कहती है
सुन्दर रचना

Unknown ने कहा…

संगीता जी आप तो हमेशा से ही प्रेरणा स्रोत रही हैं, धन्यवाद्!!!

वर्मा जी, आप शायद पहली बार मेरे ब्लॉग पर आये, अच्छा लगा!! उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद्!!!

Saurabh Pandey ने कहा…

awesome poem....