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गुरुवार, 13 अगस्त 2009

Ek mulakat - khud apse

कभी कभी यूं ही एक मुस्कुराता सा चेहरा मेरी आँखों मे तैर जाता है,
अपनी प्यारी सी हंसी से मुझे सुकून पंहुचा जाता है,
मगर जब कभी भी उस हंसी को, उस एहसास को ढूंढ पाने को,
उसमे समां जाने को,

महसूस कर पाने; उसका अपनापन और पा जाने को सारा आकाश,
मै जब बेचैन हो उठती हूँ,
देखती हूँ, ढूंढती हूँ, तलाश करती हूँ,
उसे अपने आस पास मगर हासिल होता है सिर्फ और सिर्फ सिसकती आह ...

क्यों जवाब चाहती हूँ मै आपसे, क्यों गाएब है वो प्यारी मुस्कान जो आपके खुद क होने का एहसास आपके साथ रखती है,
जुदा नहीं होने देती आपको आपसे ही, क्यों खो से गए है ये एहसासात! जो आपके अंदर है,
इसलिए उठो, ढूंढो, खोजो और पहचानो खुद मे छुपी उस मुस्कान को,
पा जावोगे जवाब खुद-ब-खुद इसलिए चाहती हूँ कि यह पहल आपसे हो ...

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