यू तो बहुत हैं बातें कहने की मगर किससे कहें हम,
कब तक खामोश रहें और यू ही सहते रहे हम,
नहीं किसी और की नहीं; अपनी ही अंतरदशा की कहानी,
सुनने में लगेगी अजीब-अकेली-अनजानी...
मालूम न थी मुझे शब्दों की ये अहमियत,
बाद एक मुद्दत के समझ पाई मै इसकी हकीकत,
और शायद यह हकीकत ही भारी पड़ गयी मुझपर,
कहना था जो किसी से कह न सके अपनी जिन्दगी भर,
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2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर है ! किसीसे कहने की ज़रूरत नहीं ... अपना हाले दिल इस ब्लॉग में लिखते रहिये ... अपने आप कविता बनते जायेंगे !
bahut dino baat ajj apna blog khola, apki tippdi dekhker hardik prasannata hui, ki aj bhi log kuch padhne janne k ichuk hai!
Dhanyawad!
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