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रविवार, 12 अगस्त 2012

निज कुर्बानी...

चाहती है फिर लहू 
भारत के नव निर्माण मे,
मांगती है यह लहर 
भारत के नव उत्कर्ष पर...

ले चलो हमको बना दो, 
धधकती ज्वाला के सम
बहुत जल के भटक ली, 
ये चिटकती चिंगारी सम...

मांगती है आज फिर
भारत-भू हमसे कुर्बानी,
हो गयी रुसवा ये खुद से
मांग अपनी होने की निशानी...

जो न दौड़े लहू
बनकर ज्वाला शरीर मे,
कब धधकेगी वो चिंगारी
जो प्रस्तुत हो लेकर निज कुर्बानी...

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