जिंदगी
तेरी मंजरी,
बड़ी भोली है
जो तूने इस पर
कर लिया
यकीन
हुई है ये कभी
किसी की
जो तेरी होगी,
खुशियाँ भी
कभी गम के
साकी हुई,
माफ़ कर
ऐ गुनहगार
दिल मेरे
कभी गम के
साकी हुई,
माफ़ कर
ऐ गुनहगार
दिल मेरे
मुझको बता,
क्यों?
तुझपे ऐतबार
इतना ख़ास सा था,
क्यों?
तुझपे ऐतबार
इतना ख़ास सा था,
इकरार किया
झूठा वफ़ा था,
या कि वो
प्यार ही न था ?
झूठा वफ़ा था,
या कि वो
प्यार ही न था ?
4 टिप्पणियां:
माफ़ कर
ऐ गुनहगार
दिल मेरे
बहुत अच्छी पक्तियँा
बधाई
सैनी जी,
टिप्पणी तथा ब्लॉग पर आने के लिए साभार धन्यवाद् !!!!!
बहुत उदास सी नज़्म ... ..लेकिन मन को छूती हुई ....
हमेशा की भांति आपकी टिप्पड़ियाँ सन्देश सुनाती सी प्रतीत हुई! साभार!!!
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